Friday, October 12, 2012


आदिवासी  पुस्तक मेला एवमं आदिवासी साहित्यकार संगोश्ठी रांची दिनांक 20 जून 2012 से 1 जुलाई 2012 में भागीदारी करते हुए लेखक और दर्शक
चित्रों में

आदिवासी पुस्तक मेला






रांची आदिवासी पुस्तक मेला
एवं
साहित्यिक संगोष्ठी के सत्रा व भागीदार आदिवासी साहित्यकार

ऑल इंडिया ट्राइबल लिटरेरी फोरम]
रमणिका फाउंडेशन एवं साहित्य अकादेमी

दिनांक: 29-30 जून और 1 जुलाई 2012
उद्घाटन सत्र29@6@2012 सुबह: 10-30µ1-30 तक)

अध्यक्षता एवं परिचय: रमणिका गुप्ता
स्वागत भाषण: कृष्णचंद्र टुडू
उद्घाटन पुस्तक मेला: बsaजेमिन लकड़ा
उद्घाटन साहित्यिक संगोष्ठि: एल. के. भगत
प्रतिवेदन: वासवी कीड़ो
बीज भाषण: प्रभाकर तिर्की
कविता पाठ: ग्रेस कुजूर
कविता पाठ: ओली मिंज
सृजन गाथा/मिथक: देवेन्द्रनाथ चम्पिया
शौर्यगाथा: शिशिर टुडू
लोकगीत: गन्दुरा मुण्डा
धन्यवाद: शांति खलको
संचालन: बृजेन्द्र त्रिपाठी
पुस्तक लोकार्पण: हो भाषा और साहित्य का इतिहास एवं चौथा चूल्हा और आरण्यकµलेखक: आदित्य प्रसाद सिन्हा

कविता
प्रथम सत्र µ29@6@2012 दोपहर 2-30µसंध्या 5-00 तक
अध्यक्षता: ग्रेस कुजूर
धनिक गुड़िया
सिद्धेश्वर सरदार
ज्योति लकड़ा
सरिता सिंह बड़ाइक
अनुज लुगुन
डोबरो बिरूउली
रेमिस कंडुलाना
शिवलाल किस्कू
फ्रांसिस्का कुजूर
विष्णु देहरी
मेरी एस. सोरेंग
कमल लोचन कोड़ा
कविता पाठ एवं अध्यक्षीय टिप्पणी

कहानी
द्वितीय सत्र %µ29@6@2012 संध्या 5-30µ8-00 तक)
अध्यक्षता: हरि उरांव
रोज केरकेट्टा
कृष्ण चंद्र टुडू
महादेव टोप्पो
मंगल सिंह मुण्डा
मृदुला सांगा
सरिता सिंह बड़ाइक
हेसेल सारू
विमल टोप्पो
अध्यक्षीय टिप्पणी

कविता
तृतीय सत्रµ30@6@2012 सुबह: 9-30µ12-30 तक)
अध्यक्षता: बृजेन्द्र त्रिपाठी
प्रीति मुर्मू
लाल सिंह बोयपई
हेसेल सारू
श्याम चंद्र हेम्ब्रम
सत्यनारायण मुण्डा
निर्मला पुतुल
शांति खलको
जोबा मुरमू
नितिशा खलको
बासन्ती कुमारी कुजूर
अध्यक्षीय टिप्पणी

सृजन मिथक एवं लोककथा
चतुर्थ सत्रµ30@6@2012 दोपहर 12-30µ2-00 तक)
अध्यक्षता: देवेन्द्रनाथ चम्पिया
दिगम्बर हांसदा
दमयंती सिंकू
सिद्धेश्वर सरदार
सिकरा दास तिर्की
हरि उरांव
सी. आर. माझी
जोबा मुरमू
अध्यक्षीय टिप्पणी

कहानी
पांचवा सत्रµ30@6@2012 दोपहर 3-00µसंध्या 5-30 तक)
अध्यक्षता: हरिराम मीणा
महावीर उरांव
बंधु भगत
लुस्कू सामाद
नारायण भगत
वीरेन्द्र कुमार सोय
बालेश्वर सरदार
फ्रांसिस्का कुजूर
अध्यक्षीय टिप्पणी

शौर्यगाथा
छठा सत्रµ30@6@2012 संध्या 6-00µ7-30 तक)
अध्यक्षता: कृष्ण चंद्र टुडू
देवेन्द्रनाथ चम्पिया
सी. आर. माझी
पाल्टन मुर्मू
सुभाष चंद्र मुण्डा
लुस्कू सामाद
शरण उरांव
नवीन मुण्डू
हरि उरांव
बासिल कीड़ो
अब्राहिम कुल्लू
अध्यक्षीय टिप्पणी

लोकगीत
सातवां सत्रµ30@6@2012 संध्या 7-30µ8-30 तक)
अध्यक्षता: वासवी कीड़ो
सोमा सिंह मुण्डा
दिशा उड़ेया
गन्दुरा मुण्डा
सोनी तिरिया
पुतुल तिर्की
थीबू बिरजिया
निर्मला सरदार
सुभाष सरदार
अध्यक्षीय टिप्पणी

एकांकी नाटक
आठवां सत्रµ01@7@2012 सुबह 9-00µ11-30 तक)
अध्यक्षता: मेघनाथ
ग्रेस कुजूर
ग्लोरिया सोरेंग
सिद्धेश्वर सरदार
बालेश्वर सरदार
मेरी क्लोडिया सोरेंग
अध्यक्षीय टिप्पणी

सृजन मिथक एवं लोककथा
नौंवा सत्रµ01@7@2012 दोपहर 12-00µ2-00 तक)
अध्यक्षता: दिगम्बर हांसदा
लुस्कू सामाद
सुभाष चंद्र मुण्डा
भोलानाथ मार्डी
प्रदीप बोदरा
अमिता मुण्डा
ज्योति लकड़ा
अनुराधा मुण्डू
उर्सुला भेंगरा
अध्यक्षीय टिप्पणी

समापन
दसवां सत्रµ01@7@2012 nksigj 2-00µ3-00 तक)
अध्यक्षता: हरिराम मीणा
समापन भाषण: रवीन्द्र नाथ भगत
                % रमणिका गुप्ता
धन्यवाद: वासवी कीड़ो
                % बृजेन्द्र त्रिपाठी


स्थान: ह्यूमन पोटेंशियल डेवेलपमेंट सेंटर, चर्च रोड, रांची-834001

आदिवासियों ने अपनी चुप्पी तोड़ी है’

‘आदिवासी पुस्तक मेला और साहित्य संगोष्ठी का मुख्य मकसद झारखंड के आदिवासी साहित्यकारों की रचनात्मक प्रतिभा की खोज है। हम अपने मकसद में बहुत हद तक सफल रहे हैं जिसका परिणाम है कि पुस्तक मेला और संगोष्ठी मं भूमिज, पहाड़िया, असुर, बिरहोर सरीखी आदिम जनजातियों के रचनाकारों की रचनाएं भी हमें उपलब्ध हुई हैं, जो हमारे लिए भी सुखद आश्चर्य का विषय है,’ ये बातें रमणिका फाउंडेशन की अध्यक्ष और अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यिक मंच की को-ऑर्डिनेटर और प्रसिद्ध साहित्यकार रमणिका गुप्ता ने ‘अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यिक मंच’, ‘रमणिका फाउंडेशन’ और ‘साहित्य अकादेमी’ और उसके आदिवासी फ्रंट ‘अभासम’ द्वारा रांची में आयोजित तीन दिवसीय पुस्तक मेला सह-संगोष्ठी के उद्घाटन सत्रा के अपने अध्यक्षीय भाषण में कहीं।
इससे पूर्व समारोह की साहित्य संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए रांची विश्वविद्यालय के उप-कुलपति 
डॉ. एल.एन. भगत ने कहाµ‘‘भाषा के महत्व को साहित्यकार ही समझते और संजोते हैं। आदिवासी पुस्तक मेला से झारखंडी साहित्य के विकास में सहयोग मिलेगा। झारखंडी भाषाओं में अभी बहुत काम करने की जरूरत है।’’ पश्चिम बंगाल के पूर्व महालेखाकार बेंजामिन लकड़ा ने पुस्तक मेले का उद्घाटन करते हुए कहाµ‘‘आदिवासियों का जीवन-दर्शन और उनके संघर्ष को आदिवासी ही ज्यादा बेहतर समझ सकते हैं और वही उसे लिख भी सकते हैं।’’
बीज वक्तव्य देते हुए आदिवासी साहित्यिक मंच के महासचिव प्रभाकर तिर्की ने कहाµ ‘‘आदिवासी समाज ने अपनी चुप्पी तोड़ी है। आज वह कलम के जरिये अपनी बातें समाज के सामने रख रहा है।’’
‘बरहेट प्रखंड के भोगनाडीह में अवतरित हुए... सिद्धो-कान्हू, चांद और भैरो ढाल बन संतालांे के...। जोहार-जोहार! सृष्टिकर्ता सुन लो आज, सिद्धो-कान्हू, चांद और भैरो वापस हमें दे दो आज... अब भी आत्मा धधक रही है, क्रांति की एक प्यास में, व्याकुल हृदय तरस रहा है एक और हूल की आस में! आयोजन के दूसरे दिन, हूल दिवस के खास मौके पर प्रोफेसर प्रीति मुर्मू ने ये काव्यात्मक उद्गार व्यक्त किए। शिवलाल किस्कू ने आदिवासी लड़ाकों की शौर्य गाथा और उनके त्याग की पीड़ा की मार्मिक व्याख्या की।
जोबा मुर्मू ने अपनी कविता ‘अड़ाग सुर’ में कहाµ‘विशाल बरगद पेड़ की छाया में सिद्धो-कान्हू, आपने आजादी का इंतजार किया... कर चुकाते-चुकाते थक गये थे संताल। इसलिए तो आपने विद्रोह का आगाज़ किया...।’
‘हो’ गोत्रा के शोधकर्ता लालसिंह बोयपई ने अपनी कविता में कहाµ‘जायराकांडा राइज तला मला रे दखिन कोल्हान प्रमंडल रे सारंडा बुरू सजावा काना किलि-मिलि तन बुरू...।’ अर्थात झारखंड राज्य के पश्चिमी सिंहभूम में दक्षिण कोल्हान प्रमंडल का सारंडा वन, पहाड़ियों की उ$ंची चोटियांे से सजा है।
चौथे सत्रा में शांति खलको, सत्य नारायण मुंडा, श्याम चरण हेम्ब्रम के अलावा युवा कवयित्राी नीतिशा खलखो व हेसेल सारू की कविता भी खूब सराही गई। लोक-कथा सत्रा की अध्यक्षता राजस्थान के पूर्व पुलिस आयुक्त व वरिष्ठ आदिवासी साहित्यकार हरिराम मीणा ने की।
छठे सत्रा में शौर्यगाथा और सातवें सत्रा में लोकगीत प्रस्तुत किए गए।
मेले के दौरान ‘हो’ भाषा व साहित्य का इतिहास’ के तृतीय संस्करण एवं ‘चौथा चूल्हा’ पुस्तक का लोकार्पण उपकुलपति डॉ. एल.एन. भगत ने किया। दोनों पुस्तकें डॉ. आदित्य प्रसाद सिन्हा ने लिखी हैं। इसके अतिरिक्त पंचपरगनिया मंे लिखी पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया।
आयोजन के अंतिम दिन आदिवासी साहित्य और शिक्षा को लेकर तीन प्रस्ताव पारित हुएµ1. आदिवासी भाषा साहित्य अकादमी की राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर स्थापना हो। 2. मातृभाषा में शिक्षा अनिवार्य हो। 
3. त्रिभाषा फार्मूला बदला जाये और नया फार्मूला बनाया जाये जिसमें चार भाषा पढ़ाने की व्यवस्था हो।
एकांकी सत्रा में आकाशवाणी की ग्रेस कुजूर ने डायन पर केंद्रित एकांकी नाटक का पाठ किया। इसमें ज्वलंत सवाल उठा कि स्त्राी ही डायन क्यों, जबकि ओझा पुरुष होते हैं। ग्लोरिया सोरंेग, सिद्धेश्वर सरदार और बालेश्वर सरदार (भूमिज) ने भी एकांकी पढ़कर सुनाया। ‘सृजन मिथक और लोककथा’ सत्रा में ल्सुक सामाद, सुभाषचंद्र मुण्डा, प्रदीप बोदरा, ज्योति लकड़ा और उर्सुला भेंगरा ने भी अपनी बातें रखीं। अध्यक्षता दिगंबर हांसदा ने की, जबकि अध्यक्षता फिल्मकार मेघनाथ ने की।
समापन भाषण देते हुए रमणिका गुप्ता ने कहाµ‘‘इस मेले का उद्देश्य आदिवासियों की सृजनात्मक प्रतिभा को पूरे देश से रूबरू कराना भी है। आदिवासियों की अपनी अद्वितीय साहित्य संस्कृति है, अपना जीवन-दर्शन है। जीवन शैली है। आज उनकी मुख्य समस्या विस्थापन, पलायन और बहिरागत की घुसपैठ है। उनके पास जलµजंगलµजमीन, संस्कृति और अपनी भाषा है।’’ सुश्री गुप्ता ने आदिवासी भाषाओं व पहचान के विलुप्त होने पर चिंता जताते हुए कहाµ‘‘भाषाएं कभी नहीं मरतीं, उन्हें मार दिया जाता है।’’
समापन सत्रा में हरिराम मीणा ने कहाµ ‘‘आदिवासियों के बारे में जिन्हें जानकारी नहीं थी उन्होंने ही उनका इतिहास लिखा। यही वजह थी कि कई तथ्यात्मक भूलें हुईं। ऐसे में उनके इतिहास को नये सिरे से लिखने की जरूरत है। आदिवासियों से जिन्दगी जीने का ढंग सीखना चाहिए। आदिवासी लेखन से हिन्दी साहित्य समृद्ध होगा।’’ 
पुस्तक मेले में दिल्ली के रमणिका फाउंडेशन व आल इंडिया ट्राइबल लिटरेरी फोरम के अतिरिक्त वाणी प्रकाशन, राजकमल प्रकाशन, इलाहाबाद के के. के. प्रकाशन, साहित्य भारती व झारखंड के अन्य प्रकाशकों व लेखकों ने भी अपने-अपने स्टॉल लगाए थे। ‘पूर्वोत्तर: आदिवासी सृजन और मिथक’, ‘आदिवासी साहित्य यात्रा’, ‘आदिवासी कौन’, ‘आदिवासी शौर्य एवं विद्रोह’, कुमार सुरेश सिंह की ‘बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन’, महाश्वेता देवी की ‘जंगल की दावेदार’ सहित कई पुस्तकों को पाठकों ने पसन्द किया और उनकी अच्छी-खासी बिक्री हुई। स्टॉल पर आदिवासियों से संबंधी जर्नल, शोधपरक पुस्तकें, विस्थापन और मानवाधिकार के मसले से जुड़ी सैकड़ों पुस्तकें उपलब्ध थीं। आदिवासी पुस्तक मेले में तीन लाख रुपये से अधिक की पुस्तकें बिकीं जो एक सुखद आश्चर्य से भर देने वाला तथ्य है।


Thursday, October 11, 2012


Ramnika Foundation is committed to bring in egalitarian change in society through empowerment of the marginalized and oppressed communities, specially Tribals. A modern society which can not liberate the victims of institutionalized discrimination has no right to call itself a civilized and democratic society.

Our main aim and agenda is to generate socio-cultural forces that are necessary for bringing attitudinal change in people’s outlook towards the victims of socio-cultural injustice, especially the Tribals, Dalits and women.

For this it is very essential that victims of injustice, exploitation and discriminated classes come forward and assert their voice in a united way. To enable them to assert, it is also essential that they shake off their inferiority complex which they have developed due to the age old suppression and subjugation. It is also necessary that they fight for their self respect and identity.